इत्तफाक हो या उम्मीद
तक़दीर हो या मेहरबां
इछाओ की आँख मिचौली
चुपके से खेले मन की होली
अनगिणत रंग मिले संग
मेहरबां के मेले चाहतो के झमेले
पाना पाना और समाना
लूट लिया तक़दीर का खजाना
माना था सुहाना इसको है पाना
एहसास था प्यारा जो तक़दीर ने ना माना
-Mamta Girish Trivedi